असहयोग आंदोलन ( Asahyog Andolan in Hindi) – रोलेक्ट एक्ट, जलियांवाला बाग हत्याकांड, खिलाफत आन्दोलन, आर्थिक संकट एवं सूखा और महामारी के चलते 1 अगस्त 1920 को आंदोलन शुरू किया गया था। इसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था और ब्रिटिश उत्पादों के उपयोग को समाप्त करने, ब्रिटिश पदों से इस्तीफा लेने या इस्तीफा देने, सरकारी नियमों, अदालतों आदि पर रोक लगाने पर ध्यान केंद्रित किया गया था। तो आइए जानते असहयोग आंदोलन के बारे महत्वपूर्ण बातें:-
असहयोग आंदोलन के बारे में एक नजर में – Non Cooperation Movement Information
आंदोलन की शुरुआत: | 1 अगस्त, 1920 |
आंदोलन के नेतृत्वकर्ता: | महात्मा गांधी |
असहयोग आंदोलन का मुख्य उद्देश्य: | सरकार के साथ सहयोग नहीं करके सरकारी कार्यवाही में बाधा डालना |
असहयोग आंदोलन के मुख्य कारण: | रोलेट एक्ट, जलियांवाला बाग नरसंहार, आर्थिक संकट |
आंदोलन कब तक चला: | फरवरी, 1922 तक |
आंदोलन को वापस लेने का मुख्य कारण: | चौरी–चौरा कांड |
असहयोग आंदोलन के बारे में महत्वपूर्ण प्वाइंट
- असहयोग आंदोलन की पृष्ठभूमि 1919 में तैयार हुई। महात्मा गांधी जनता के मानसिक दशा को समझ चुके थे इसलिए उन्होंने सितंबर 1920 में इस पर विचार करने के लिए कांग्रेस का अधिवेशन बुलाया और असहयोग आंदोलन चलाने का निश्चय किया
- असहयोग आंदोलन 1920 में 1 अगस्त को शुरू किया गया था। इसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था और ब्रिटिश उत्पादों के उपयोग को समाप्त करने, ब्रिटिश पदों से इस्तीफा लेने या इस्तीफा देने, सरकारी नियमों, अदालतों आदि पर रोक लगाने पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
- यह आंदोलन अहिंसक था और जलियांवाला के बाद देश के सहयोग को वापस लेने के लिए शुरू किया गया था महात्मा गांधी ने कहा कि यदि यह आंदोलन सफल रहा तो भारत एक वर्ष के भीतर स्वतंत्रता प्राप्त कर सकता है।
- असहयोग आंदोलन ने भारत में निर्मित वस्तुओं और उत्पादों के उपयोग और विनिर्माण को आगे बढ़ाया और ब्रिटिश उत्पादों के उपयोग को बहिष्कार किया।
- असहयोग आंदोलन का देशभर में व्यापक असर देखने को मिला था। गांधी के इस आंदोलन में शहर से लेकर गांव देहात के लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। इस दौरान छात्रों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया था। वकीलों ने अदालत में जाने से इनकार कर दिया था। इतना ही नहीं कई कस्बों और शहरों में कामगार ने भी काम करना बंद कर हड़ताल पर चले गए। एक रिपोर्ट के अनुसार, 1921 में 396 हड़तालें हुई।
- असहयोग आंदोलन के दौरान संघर्ष की नई प्रक्रियाओं ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जिसमें असहयोग आंदोलन के प्रमुख कार्यक्रम निम्न थे –
- 1. विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना
- 2. स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करना
- 3. सरकार द्वारा दी गई उपाधियों का त्याग करना
- 4. स्थानीय संस्थाओं में मनोनीत सदस्यों द्वारा त्यागपत्र देना
- 5. सरकारी दरबारों का बहिष्कार करना
- 6. सरकारी स्कूलों का बहिष्कार करना
- 7. ब्रिटिश कचहरियों व वकीलों का बहिष्कार करना आदि
- आंदोलन के सकारात्मक पक्ष में निम्न बातें थी:
- राष्ट्रीय स्कूल और कॉलेजों की स्थापना
- विवाद सुलझाने करने के लिए निजी पंचायत का उपयोग
- स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार
- हथकरघा और हाथ बुनाई उद्योग का जीर्णोद्वार
- आंदोलन के 7 दिन बाद उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में चौरी चौरा नामक स्थान पर भयंकर दुर्घटना हुई जिसमे किसानों के एक हिंसक समूह ने पुलिस स्टेशन में आग लगा दी और 22 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी|और आंदोलन को आकस्मिक ढंग से स्थगित कर दिया गया।
- गांधी जी ने सीआर दास, मोतीलाल नेहरू और रवींद्रनाथ टैगोर जैसे नेताओं की आलोचना करते हुए कहा कि भारत अहिंसक आंदोलन के लिए तैयार नहीं था।
- असहयोग आंदोलन के कारण
- ब्रिटिश सरकार ने प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीयों का सहयोग प्राप्त करने के लिए अनेक आश्वासन दिये थे जिन्हें बाद में पूरा नहीं किया गया. परिणामस्वरूप भारतीयों में असन्तोष की भावना फैल गयी थी.
- ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट एक्ट पारित करके जनता में व्यापक असन्तोष की भावना पैदा की.
- 13 अप्रैल, 1919 ई. में जलियाँवाला हत्याकाण्ड से भी ब्रिटिश शासन विरोधी भावनाओं को बढ़ावा मिला.
- भारतीय समाज के कई हिस्सों को काफी आर्थिक असुविधा का सामना करना पड़ा।
- शहरों में रहने वाले मध्यम वर्ग, मज़दूर और कारीगरों को ऊंची कीमतों और खाद्यान्न तथा आवश्यक वस्तुओं की कमी का सामना करना पड़ा।
- ग्रामीण लोग और किसान व्यापक सूखे और महामारी के शिकार थे। अंग्रेज़ों को इस घटनाक्रम के बारे में कुछ भी पता नहीं था।
- जन-जागरण के लिए सार्वजनिक सभाएँ तथा जुलूसों की व्यवस्था की जाए
- असहयोग आंदोलन ने महिलाओं की मुक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई क्योंकि गांधीजी के एक आह्वान पर बड़ी संख्या में भारतीय महिलाएं ब्रिटिश विरोधी संघर्ष में भाग लेने के लिए अपने घरों से बाहर निकल आईं। राष्ट्रीय संघर्ष में महिलाओं की इस सक्रिय भागीदारी ने सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव लाने में मदद की।
- असहयोग आन्दोलन ने देश की जनता को आधुनिक राजनीति से परिचय कराया आरै उसमें आजादी की इच्छा जगायी. इसने यह दिखाया कि भारत की दीन-हीन जनता भी आधुनिक राष्ट्रवादी राजनीति की वाहक हो सकती है.
असहयोग आंदोलन की अन्य महत्वपूर्ण बातें
- आंदोलन का सूत्रपात गांधी जी ने अपने कैसर-ए-हिंद के पदक को वापस देकर किया
- इस आंदोलन की विशेष बात हिंदू मुस्लिम एकता थी
- देश भर में लगभग 50000 गिरफ्तारियां हुई, गांधीजी को छोड़कर लगभग सभी बड़े नेता जेल में डाल दिए गए
- सरकारी आंकड़ों के अनुसार 70 लोग मरे गए
- गांधीजी ने आंदोलन में भाग लिया इससे कुछ हिंदू गांधीजी के विरोधी हो गए और उन्होंने आंदोलन में भाग लेना बंद कर दिया
- आंदोलन भले ही स्थगित रहा लेकिन इसने ब्रिटिश सरकार के नियम को हिला कर दिया
- इस आंदोलन में घर-घर स्वराज का संदेश पहुंचा दिया था साथ ही इसी आंदोलन ने राष्ट्रीय भावना और राष्ट्रीय एकता का सूत्रपात किया
- विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार हुआ स्वदेशी प्रेम जागृत हुआ और इस प्रकार आंदोलन से राष्ट्रीय चेतना जागृत हुई
- आंदोलन के साथ ही भारतीय राजनीति में एक नया युग प्रारंभ हुआ जिसे गांधी युग कहा गया