Lodi Vansh in hindi :- लोदी राजवंश (या लोधी) एक अफगान वंश था जिसने दिल्ली सल्तनत पर 1451 से 1526 तक शासन किया था। यह दिल्ली सल्तनत का आखिरी वंश था। दिल्ली पर प्रथम अफगान राज्य की स्थापना का श्रेय बहलोल लोदी को दिया जाता है Lodi Vansh in hindi
लोदी राजवंश का इतिहास – Lodi Vansh in hindi
बहलोल लोदी – Bahlul Lodi
- बहलोल लोदी दिल्ली में प्रथम अफ़ग़ान राज्य का संस्थापक थे। 19 अप्रैल, 1451 को बहलोल ‘बहलोल शाह गाजी’ की उपाधि से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा।
- 1451 ई. में जब सैयद वंश के अलाउद्दीन आलमशाह ने दिल्ली का तख़्त छोड़ा, उस समय बहलोल लाहौर और सरहिन्द का सूबेदार था। उसने अपने वज़ीर हमीद ख़ाँ की मदद से दिल्ली के तख़्त पर क़ब्ज़ा कर लिया।
- बहलोल लोदी ने बहलोल सिक्के का प्रचलन करवाया था
- वह अपने सरदारों को “मकसद ए अली” कहकर पुकारता था मैं अपने सरदारों की खड़ी रहने पर स्वयं भी खड़ा रहता था
- 12 जुलाई 1489 को दिल्ली में उनका निधन हो गया और उसके बाद गद्दी पर उनके बेटे सिकंदर लोदी ने अपने साम्राज्य का विस्तार किया था।
सिकंदर लोदी – Sikandar Lodi
- सिकंदर लोदी जिनका जन्म नाम निजाम खान हैं। सिकंदर लोदी यह नाम उनके पिता ने उन्हें दिया था।
- 12 जुलाई 1489 को बहलोल लोदी की मृत्यु के बाद लोदी वंश का अगला शासक बना और वह सुल्तान सिकंदर शाह की उपाधि से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा और इस वंश का सबसे सफल शासक कहलाया।
- सिकंदर लोदी ने 1504 ईसवी में आगरा शहर की स्थापना की
- भूमि मापन के लिए प्रमाणिक पैमाना गजे सिकंदरी का प्रचलन सिकंदर लोदी ने किया
- गुलरूखी शीर्षक से फारसी कविताएं लिखने वाला सुल्तान सिकंदर लोदी था
- सिकंदर लोदी ने आगरा को अपनी नई राजधानी बनाया था
- इसने मुस्लिमों को ताजिया निकालने एवं मुस्लिम स्त्रियों को पीरों और संतो की मजार पर जाने पर रोक लगा दी
- गले की बीमारी के कारण 21 नवंबर 1517 को इसकी मृत्यु हो गई
इब्राहिम लोदी – Ibrahim Lodi
- इब्राहिम लोदी सिकंदर के सबसे छोटे बेटा था जो 1517 में सिकंदर की मृत्यु के बाद लोदी वंश का शासक बना
- 21 अप्रैल 1526ई. को पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी बाबर से हार गया और मारा गया
- इब्राहिम लोदी की मृत्यु के बाद बाबर ने नया वंश स्थापित किया जिसे हम मुगल साम्राज्य कहते है
पानीपत की लड़ाई – Panipat War in Hindi
इब्राहीम लोदी के शासन में लोदी सम्राज्य अस्थिरता एवं अराजकता के दौर से गुजर रहा था और आपसी मतभेदों एवं निजी स्वार्थों के चलते दिल्ली की सत्ता निरन्तर प्रभावहीन होती चली जा रही थी।
इन विपरीत परिस्थितियों इब्राहीम लोदी के कई सरदार और उसके कुछ अपने सम्बधि उसके बर्ताव की वजह से उससे नाराज थे, उसी समय इब्राहीम के असंतुष्ट सरदारों में पंजाब का शासक ‘दौलत ख़ाँ लोदी’ एवं इब्राहीम लोदी के चाचा ‘आलम ख़ाँ’ ने काबुल के तैमूर वंशी शासक बाबर को भारत पर आक्रमण के लिए निमंत्रण दिया।
बाबर ने यह निमंत्रण स्वीकार कर लिया और वह भारत आया। जनवरी, 1526 में अपनी सेना सहित दिल्ली पर धावा बोलने के लिए उसने अपने कदम आगे बढ़ा दिया दिए। इसकी खबर जब इब्राहीम लोदी को मिली तो उसने बाबर को रोकने के लिए कई कोशिश किया लेकिन सभी बिफल रहा। युद्ध को जीतने के उद्देश्य से बाबर पूरी योजना के साथ आगे बढते रहा और इधर से इब्राहीम लोदी भी सेना लेकर निकल पड़ा, दोनों सेना पानीपत के मैदान में 21 अप्रैल, 1526 के दिन आमने-सामने आयी।
बाबर ने तुलगमा युद्ध पद्धति उजबेकों से ग्रहण की थी। पानीपत के युद्ध में ही बाबर ने अपने दो प्रसिद्ध निशानेबाज़ ‘उस्ताद अली’ एवं ‘मुस्तफ़ा’ की सेवाएँ ली। इस युद्ध में पहली बार बारूद, आग्नेयास्त्रों और मैदानी तोपखाने को उपयोग किया गया। साथ ही इस युद्ध में बाबर ने पहली बार प्रसिद्ध ‘तुलगमा युद्ध नीति’ का प्रयोग किया था और इसी युद्ध में बाबर ने तोपों को सजाने में ‘उस्मानी विधि’ (रूमी विधि) का प्रयोग किया था।
बाबर के सूझबूझ, कुशल नेतृत्व और आग्नेयास्त्रों की ताकत आदि के सामने इब्राहिम लोदी बेहद कमजोर थे। इब्राहिम लोदी की सेना के पास प्रमुख हथियार तलवार, भाला, लाठी, कुल्हाड़ी व धनुष-बाण आदि थे। हालांकि उनके पास विस्फोटक हथियार भी थे, लेकिन, तोपों के सामने उनका कोई मुकाबला ही नहीं था।
इसके साथ ही गंभीर स्थिति यह थी कि सुल्तान की सेना में एकजुटता का अभाव और इब्राहिम लोदी की अदूरदर्शिता का अवगुण आड़े आ रहा था। इस भीषण युद्ध में सुल्तान इब्राहिम लोदी व उसकी सेना मृत्यु को प्राप्त हुई और बाबर के हिस्से में ऐतिहासिक जीत दर्ज हुई। और लोदी वंश के स्थान पर मुगल वंश की स्थापना हुई।
इब्राहिम की मृत्यु के बाद, बाबर ने इब्राहीम के क्षेत्र में खुद को सम्राट का नाम दिया। इब्राहिम की मृत्यु ने लोदी राजवंश के अंत में चिह्नित किया और भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना का नेतृत्व किया। जिसने लगभग 500 साल तक भारत पर राज किया।
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