ओजोन परत (Ozone Layer) : ओजोन परत सूर्य की अल्ट्रावॉयलेट (यूवी) विकिरण से बचाती है इस परत के बिना, सूर्य से यूवी किरणें सीधे पृथ्वी पर पहुंचती हैं! इससे मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा और यह काफी खतरनाक होगा! यह परत धरातल से सामान्यतः 10 से 50 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच पाई जाती है! आइए जानते हैं इससे जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी:-
ओजोन गैस एक नजर में – Ozone Gas Information in Hindi
ओजोन गैस का रासायनिक सूत्र क्या है | O3 |
ओजोन गैस कहां पाई जाती है | समताप मंडल में |
ओजोन गैस का रंग कैसा होता है | हल्का नीला |
ओजोन गैस और ओजोन परत – Ozone Gas and Ozone Layer
- ओजोन एक हल्के नीले रंग की गैस होती है। जिसका रासायनिक सूत्र O3 है। ओजोन परत सामान्यत: पृथ्वी तल से 10 किमी से 50 किमी की ऊंचाई के बीच पाई जाती है। यह गैस सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों को रोकने या फिल्टर का काम करती है। और इस तरह ओजोन परत सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकती है।
- ओजोन परत के बिना, सूर्य से यूवी किरणें सीधे पृथ्वी पर पहुंचती हैं। इससे मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा और यह काफी खतरनाक होगा। इसके प्रभाव से सभी प्राणी और वनस्पति तीव्र ताप से नष्ट हो जाऐंगें और प्राणी कैंसर जैसे रोग से पीडि़त हो जाएंगें । इसीलिए ओजोन मण्डल या ओजोन परत को सुरक्षा कवच कहते हैं।
- ओजोन परत को क्लोरो फ्लोरो कार्बन (सीएफ.सी), क्लोरीन एवं नाइट्रस ऑक्साइड जैसे रसायनों से नुकसान पहुंच रहा है। यह रेफ्रिजेरेशन उद्योग में प्रमुख रूप से प्रयुक्त होता है। ये ओजोन गैस को ऑक्सीजन में विघटित कर देते हैं, जिसकी वजह से ओजोन परत पतली हो जाती है और उसमें छिद्र हो जाता है। एक अध्ययन के अनुसार ओजोन परत में छिद्र का आकार यूरोपीय महाद्वीप के आकार के बराबर हो गया है।
- ओजोन गैस का सर्वाधिक घनत्व 22 किलोमीटर की ऊंचाई पर मिलता है। वायमुडंल में ओजोन गैस का निर्माण प्रकाश रासायनिक क्रियाओं के द्वारा होता है।
ओजोन छिद्र
- सितंबर 2006 तक अन्टार्कटिका के ऊपर ओजोन की परत में 40 प्रतिशत की कमी पाई गई थी, जिसे ओजोन छिद्र का नाम दिया गया था।
- नेशनल ओशीएनिक एंड एटमॉसफेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) पृथ्वी पर लगे उपकरणों और गुब्बारों के जरिए ओजोन परत में वार्षिक होने वाले छिद्र को मापता है।
- अंटार्कटिका के ऊपर हर साल सितंबर मध्य में ओजोन परत में छिद्र बनता है। उसके बाद अक्टूबर तक उसका दायरा सिमटता जाता है।
- वर्ष 2017 में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और नेशनल ओशीएनिक एंड एटमॉसफेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) ने संयुक्त रूप से जांच में पाया कि ओजोन परत को वर्ष 2017 में पिछले तीस वर्षों में सबसे कम नुकसान पहुंचा। वर्ष 2017 में ओजोन परत में छेद 1988 के बाद सबसे छोटा रहा है।
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल एक अंतरराष्ट्रीय संधि है। इसके तहत ओजोन परत को संरक्षित करने के लिए चरणबद्ध तरीके से उन पदार्थों को उत्सर्जन रोकना है जो ओजोन परत को नुकसान पहुंचाते हैं। यह संधि 1 जनवरी 1989 में प्रभावी हुई। इसे 196 देशों द्वारा मान्यता दी गई है। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का पूरी तरह पालन होने पर सन् 2050 तक ओजोन परत ठीक होने की उम्मीद है। 16 सितंबर को विश्व ओजोन दिवस मनाया जाता है. इसकी वजह है कि इस दिन साल 1987 में ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए गए थे
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले 96 रसायनों पर नियंत्रण लगाया गया है।
- भारत को मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत चार प्रमुख रसायनों क्लोरोफ्लोरा कार्बन, सीटीसी, हेलेन्स और हाइड्रो क्लोरो फ्लोरो कार्बन को इस्तेमाल से बाहर करना था। इसके तहत भारत ने सन् 2003 के प्रारंभ में हेलेन्स को इस्तेमाल से बाहर किया। इसके बाद 1 अगस्त, 2008 तक सीएफसी यानी क्लोरा फ्लोरा कार्बन का इस्तेमाल बंद किया। सीटीसी का इस्तेमाल 2009 में बंद कर दिया गया। अब हाइड्रो क्लोरो फ्लोरो कार्बन को इस्तेमाल से बाहर करने की प्रक्रिया जारी है।
- विश्व समुदाय ने ओजोन के क्षरण, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता जैसी चुनौतियों से पार पाने में विकासशील देशों की मदद करने के लिए ‘वैश्विक पर्यावरण सुविधा’ (जीईएफ) की स्थापना की थी। यह परिवर्तनशील अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में ओजोन के क्षरण के लिए जिम्मेदार पदार्थों को इस्तेमाल से बाहर करने की परियोजनाओं और क्रियाकलापों को बढ़ावा देती है।
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