Gk Skill की इस पोस्ट में अहिल्याबाई होल्कर ( Ahilyabai Holkar ) से जुड़े महत्वपूर्ण एवं रोचक तथ्य जैसे उनकी व्यक्तिगत जानकारी, शिक्षा तथा करियर, उपलब्धि तथा सम्मानित पुरस्कार और भी अन्य जानकारियाँ। इस पोस्ट में दिए गए अहिल्याबाई होल्कर ( Ahilyabai Holkar ) से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों को एकत्रित किया गया है जिसे पढ़कर आपको प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने में मदद मिलेगी और आप इनके बारे में अपनी जानकारी बड़ा पाएंगे । Ahilyabai Holkar Biography and Interesting Facts in Hindi
अहिल्याबाई होल्कर की जीवनी ( Ahilyabai Holkar Biography ):-
पूरा नाम- अहिल्याबाई होलकर
जन्म ( Born) – 31 मई 1725
मृत्यु (Died) – 13 अगस्त 1795
जन्म स्थान- जमखेड़, महाराष्ट्र
पिता – मानकोजी शिंदे
माता – सुशीला शिंदे
अहिल्याबाई होल्कर ( Ahilyabai Holkar )
- महारानी अहिल्याबाई होल्कर मल्हारराव होल्कर के पुत्र खंडेराव की पत्नी थीं
- अहिल्याबाई किसी बड़े राज्य की रानी नहीं थीं, लेकिन अपने राज्य काल में उन्होंने जो कुछ किया वह आश्चर्यचकित करने वाला है
- वह एक बहादुर योद्धा और कुशल तीरंदाज थीं
- उन्होंने कई युद्धों में अपनी सेना का नेतृत्व किया और हाथी पर सवार होकर वीरता के साथ लड़ीं
- अहिल्याबाई का जन्म 31 मई सन् 1725 में हुआ था
- अहिल्याबाई के पिता मानकोजी शिंदे एक मामूली किंतु संस्कार वाले आदमी थे
- इनका विवाह इन्दौर राज्य के संस्थापक महाराज मल्हारराव होल्कर के पुत्र खंडेराव से हुआ था
- सन् 1745 में अहिल्याबाई के पुत्र हुआ और तीन वर्ष बाद एक कन्या। पुत्र का नाम मालेराव और कन्या का नाम मुक्ताबाई रखा
- उन्होंने बड़ी कुशलता से अपने पति के गौरव को जगाया। कुछ ही दिनों में अपने महान् पिता के मार्गदर्शन में खण्डेराव एक अच्छे सिपाही बन गये
- मल्हारराव को भी देखकर संतोष होने लगा। पुत्र-वधू अहिल्याबाई को भी वह राजकाज की शिक्षा देते रहते थे
- उनकी बुद्धि और चतुराई से वह बहुत प्रसन्न होते थे मल्हारराव के जीवन काल में ही उनके पुत्र खंडेराव का निधन 1754 ई. में हो गया था
- अतः मल्हार राव के निधन के बाद रानी अहिल्याबाई ने राज्य का शासन-भार सम्भाला था
- रानी अहिल्याबाई ने 1795 ई. में अपनी मृत्यु पर्यन्त बड़ी कुशलता से राज्य का शासन चलाया
- उनकी गणना आदर्श शासकों में की जाती है वे अपनी उदारता और प्रजावत्सलता के लिए प्रसिद्ध हैं
- उनके एक ही पुत्र था मालेराव जो 1766 ई. में दिवंगत हो गया
- 1767 ई. में अहिल्याबाई ने तुकोजी होल्कर को सेनापति नियुक्त किया
- रानी अहिल्याबाई ने भारत के भिन्न-भिन्न भागों में अनेक मन्दिरों, धर्मशालाओं और अन्नसत्रों का निर्माण कराया था
- कलकत्ता से बनारस तक की सड़क, बनारस में अन्नपूर्णा का मन्दिर , गया में विष्णु मन्दिर उनके बनवाये हुए हैं
- इन्होंने घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया, मार्ग बनवाए, भूखों के लिए सदाब्रत (अन्नक्षेत्र ) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन हेतु की
- उन्होंने अपने समय की हलचल में प्रमुख भाग लिया
- रानी अहिल्याबाई ने इसके अलावा काशी, गया, सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, द्वारिका, बद्रीनारायण, रामेश्वर, जगन्नाथ पुरी इत्यादि प्रसिद्ध तीर्थस्थानों पर मंदिर बनवाए और धर्म शालाएं खुलवायीं
- कहा जाता है कि रानी अहिल्याबाई के स्वप्न में एक बार भगवान शिव आए। वे भगवान शिव की भक्त थीं और इसलिए उन्होंने 1777 में विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया
- उनका सारा जीवन वैराग्य, कर्त्तव्य-पालन और परमार्थ की साधना का बन गया
- भगवान शिव की वह बड़ी भक्त थीं बिना उनके पूजन के मुँह में पानी की बूंद नहीं जाने देती थीं
- सारा राज्य उन्होंने शंकर को अर्पित कर रखा था और आप उनकी सेविका बनकर शासन चलाती थी
- राजाज्ञाओं पर हस्ताक्षर करते समय अपना नाम नहीं लिखती थीं। नीचे केवल श्री शंकर लिख देती थीं। उनके रुपयों पर शंकर का लिंग और बिल्व पत्र का चित्र अंकित है ओर पैसों पर नंदी का
- तब से लेकर भारतीय स्वराज्य की प्राप्ति तक इंदौर के सिंहासन पर जितने नरेश उनके बाद में आये सबकी राजाज्ञाऐं जब तक की श्रीशंकर आज्ञा जारी नहीं होती, तब तक वह राजाज्ञा नहीं मानी जाती थी और उस पर अमल भी नहीं होता था
- अहिल्याबाई का रहन-सहन बिल्कुल सादा था शुद्ध सफ़ेद वस्त्र धारण करती थीं
- वे जेवर आदि कुछ नहीं पहनती थी। भगवान की पूजा, अच्छे ग्रंथों को सुनना ओर राजकाज आदि में नियमित रहती थी
- राज्य की चिंता का भार और उस पर प्राणों से भी प्यारे लोगों का वियोग। इस सारे शोक-भार को अहिल्याबाई का शरीर अधिक नहीं संभाल सका। और 13 अगस्त सन् 1795 को उनकी जीवन-लीला समाप्त हो गई
- अहिल्याबाई के निधन के बाद तुकोजी इन्दौर की गद्दी पर बैठा
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